लखनऊ न्यूज डेस्क: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने मकान मालिक और किराएदार के एक पुराने विवाद में अहम फैसला सुनाया है, जो इस तरह के मामलों में मिसाल बन सकता है। कोर्ट ने करीब 30 साल पुरानी याचिका को खारिज करते हुए किराएदार वोहरा ब्रदर्स पर 15 लाख रुपये का हर्जाना लगाया है। न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की बेंच ने साफ तौर पर कहा कि किराएदार ने मकान मालिक को जानबूझकर लंबी कानूनी लड़ाई में उलझाए रखा और वर्षों तक किराया भी नहीं दिया।
यह मामला 1982 से चल रहा है, जब लखनऊ के फैजाबाद रोड स्थित मकान की मालकिन कस्तूरी देवी ने किराएदार से जगह खाली करने की अपील की थी ताकि उनका बेटा वहां व्यापार शुरू कर सके। किराएदार उस वक्त सिर्फ 187.50 रुपये किराया दे रहा था, लेकिन उसने संपत्ति खाली करने से इनकार कर दिया। कस्तूरी देवी ने संबंधित प्राधिकारी के पास आवेदन दिया, जिसे 1992 में खारिज कर दिया गया। फिर उन्होंने 1995 में अपील की, जिसमें उन्हें राहत मिली, लेकिन इसके बाद किराएदार ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी, जो कई दशकों तक लंबित रही।
कोर्ट ने दो टूक कहा कि किराएदार ने 1979 से न तो किराया दिया और न ही संपत्ति खाली की, उल्टा कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुए मकान मालिक के अधिकारों को रोके रखा। अदालत ने लखनऊ के जिलाधिकारी को आदेश दिया है कि यदि तय दो महीने के भीतर हर्जाना नहीं दिया गया तो किराएदार से इसकी वसूली की जाए। यह फैसला उन तमाम किराया विवादों के लिए चेतावनी है, जिनमें किराएदार कानून का सहारा लेकर मकान मालिकों को उनके हक से वंचित करते हैं।